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मटर की खेती का उचित समय

मटर की खेती का उचित समय

मटर की खेती कई इलाकों में हरी सब्जी के लिए तो कई इलाकों में पकाने के लिए की जाती है। देश के विभिन्न राज्यों में मटर की खेती बखूबी की जाती है।

मिट्टी

मटर की खेती के लिए ब्लू दोमट मिट्टी सर्वाधिक श्रेष्ठ रहती है।

बुवाई का समय

मटर की खेती मटर की बुवाई के लिए अक्टूबर-नवंबर का माह उपयुक्त रहता है।

किस्में:-

अगेती किस्में

अगेता 6,आर्किल, पंत सब्जी मटर 3,आजाद p3 अगेती किस्मों की बिजाई के लिए 150 से 160 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखनी चाहिए एवं इनसे उत्पादन 50 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है।

पछेती किस्म

आजाद p1,बोनविले,जवाहर मटर एक इत्यादि। मध्य एवं पछेती किस्मों के लिए बीज दर 100 से 120 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखनी चाहिए। उत्पादन 60 से 125 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक मिलता है। इसके अलावा jm6, प्रकाश, केपी mr400,आईपीएफडी 99-13 किस्में भी कई राज्य में प्रचलित हैं और उत्पादन के लिहाज से काफी अच्छी है।

खाद एवं उर्वरक

मटर की खेती के बारे में जानकारी

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200 कुंटल साड़ी गोबर की खाद खेत तैयारी के समय मिट्टी में भली-भांति मिला देनी चाहिए।अच्छी फसल के लिए नाइट्रोजन 40 से 50 किलोग्राम ,फास्फोरस 50 किलोग्राम तथा पोटाश 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि मैं मिलानी चाहिए। पूरा फास्फोरस और पोटाश तथा आधा नत्रजन बुवाई के समय जमीन में आखिरी जोत में मिलाएं। शेष नाइट्रोजन बुवाई के 25 दिन बाद फसल में बुर्क़ाव करें।

बुवाई की विधि

मटर की खेती की बुवाई सब्जी वाली मटर को 20 से 25 सेंटीमीटर की दूरी पर पंक्तियों में बोना चाहिए।

सिंचाई

मटर कम पनी चाहने वाली फसल है लेकिन इसकी बुवाई पलेवा करके करनी चाहिए। बुवाई के समय पर्याप्त नमी खेत में होनी चाहिए। मटर की फसल में फूल की अवस्था पर एवं फली में दाना पढ़ने की अवस्था पर खेत में उचित नहीं होनी अत्यंत आवश्यक है लेकिन इस बात का ध्यान रहे कि पानी खेत में खड़ा ना रहे।

खरपतवार नियंत्रण

फसल की प्रारंभिक अवस्था में हल्की निराई गुड़ाई कर के खेत तक सपरिवार निकाल देना चाहिए अन्यथा की दशा में फसल का उत्पादन काफी हद तक प्रभावित होने की संभावना बनी रहती है। खरपतवार के पौधे मुख्य फसल के आहार का तेजी से अवशोषण कर लेते हैं।
जानिए मटर की बुआई और देखभाल कैसे करें

जानिए मटर की बुआई और देखभाल कैसे करें

मटर रबी सीजन की प्रमुख फसल है। प्रमुख सब्जी व दलहन की फसल होने के कारण मटर का बहुत अधिक महत्व है। अगैती फसल की मटर बाजार में काफी महंगी बिकती है। किसान भाइयों को चाहिये कि अगैती फसल की खेती करके पहले मार्केट में मटर की फलियों को लाकर बेचें। इससे काफी अधिक लाभ होता है।

मटर की बुआई किस प्रकार की जाती है?

नम शीतोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में मटर की खेती की जाती है। इसलिये हमारे देश में रबी के सीजन में सर्दियों के मौसम में मटर की खेती अधिकांश क्षेत्रों में की जाती है। इसकी खेती की बुआई के  समय 20 से 24 डिग्री का तापमान होना चाहिये तथा फसल की पैदावार के लिए 10 से 20 डिग्री का तापमान होना चाहिये। मटर की खेती के लिए मटियार दोमट तथा दोमट भूमि सबसे उत्तम होती है। सिंचित क्षेत्र में बलुई दोमट में भी मटर की खेती की जा सकती है। मटर की खेती के लिए खरीफ की फसल के बाद खेत की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिये। उसके बाद दो तीन जुताई करके मिट्टी के ढेले फोड़ने के लिए पाटा लगाना चाहिये। मिट्टी एकदम भुरभुरी हो जानी चाहिये। खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिये। यदि खेत में नमी न हो तो पलेवा करके बुआई करनी चाहिये। मटर की अगैती फसल का समय 15 नवम्बर तक माना जाता है। इसके बाद भी पछैती मटर की खेती की जा सकती है। पहाड़ी क्षेत्र में अच्छी किस्म की  मटर की बुआई एक माह पहले ही शुरू हो जाती है। मध्यम किस्म की मटर की बुआई नवम्बर में ही होती है। इसी तरह पहाड़ी व मैदानी क्षेत्रों में बुआई नवम्बर तक होता है। बुआई से पहले मटर के बीज का उपचार किया जाना बहुत जरूरी होता है। बीजों का उपचार राइजोबियम से करना चाहिये। राजोबियम कल्चर  से बीज को उपचारित करना चाहिये। बीजों को उपचारित करने के लिए 50 ग्राम गुड़ और 2 ग्राम गोंद को एक लीटर पानी में घोल कर गर्म करके मिश्रण तैयार करें। उसे ठंडा होने दे जब ये घोल ठंडा हो जाये तो उसमें राइजोबियम कल्चर को मिलाकर अच्छी तरह मिला कर उससे उपचारित करें। इस तरह उपचारित करने से पहले बीजों का शोधन कर लेना चाहिये। शोधन करने के लिए दो किलो थायरम और एक किलो कार्बन्डाजिम मिलाकर बीजों का उपचार करें। बीजों को छाया में सुखायें। जब बीज का उपचार और शोधन हो जाये तब बुआई करें। बुआई के लिए 70 से 80 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। यदि पछैती फसल की खेती करनी है तो उसमें आपको 100 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होगी।  देशी हल या सीड ड्रिल पद्धति से बुआई करनी चाहिये। किसान भाइयों को चाहिये कि  लाइन से लाइन की दूरी एक फुट से डेढ़ फुट की रखें। पौधे से पौधे की दूरी 5 से 7 सेंटीमीटर रखनी चाहिये। बीज की गहराई 4 से 7 सेंटीमीटर रखनी चाहिये।

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मटर की खेती की देखभाल ऐसे करें

बुआई के बाद सबसे पहले क्या करें, किसान भाइयों को चाहिये कि मटर की खेती में सबसे पहले खरपतवार का नियंत्रण करना चाहिये। बुआई के एक सप्ताह बाद ही खेत की निगरानी करनी चाहिये। यदि खरपतवार अधिक दिख रहा हो तो उसका निदान करने का प्रयास करना चाहिये। खेत की निराई गुड़ाई करने के साथ ही पौधों की दूरी को भी मेनटेन करना चाहिये। यदि आवश्यकता से अधिक बीज गिर गया है और पौधे पास पास उग आये हैं तो उनकी छंटाई करनी चाहिये। Matar

सिंचाई का प्रबंधन

मटर की फसल बहुत नाजुक होती है और सर्दी के मौसम में होती है। इसलिये इसकी सिंचाई का विशेष प्रबंधन करना चाहिये। शरदकालीन वर्षा वाले क्षेत्रों में मटर की खेती के लिए 2 से 3 सिंचाई जरूरी बताई गर्इं हैं। पहली सिंचाई एक से डेढ़ महीने के बाद की जानी चाहिये। दूसरी सिंचाई फलियों के आने के समय की जानी चाहिये। इस बीच यदि क्षेत्र में पाला पड़ता हो तो उससे पहले मटर के खेत में सिंचाई करनी होती है। अंतिम सिंचाई मटर के दाने पुष्ट होने के समय करनी चाहिये।

खरपतवार नियंत्रण कैसे करें

मटर की फसल की निराई व गुड़ाई करके खरपतवार का नियंत्रण किया जाता है। इससे मटर के पौधों की जड़ मजबूत होती है तथा पौधे में शाखाएं विकसित होती हैं जिससे पैदावार बढ़ जाती है। निराई गुड़ाई के अलावा मटर की खेती के खरपतवार का नियंत्रण रसायनों से भी किया जा सकता है। खरपतवार नियंत्रण के लिए ढाई से तीन लीटर पैण्डीमैथलीन प्रति हेक्टेयर बुआई के बाद तीन दिन में 500 लीटर पानी में मिलाकर उसका छिड़काव करना चाहिये। किसान भाई मेट्रीव्यूजीन और डब्ल्यूपी   मिलाकर बुआई के बाद एक पखवाड़े में  छिड़काव करें।

मटर की फसल में लगने वाले रोग और रोकथाम

मटर की फसल में कई रोग लगते हैं। किसान भाइयों को समय पर इन रोगों को उपचार करना चाहिये।
  1. चूर्णी फफूंद रोग से फसल को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। नमी के समय यह रोग मटर की फसल में तेजी से लगता है। इस रोग के लगने से तने व पत्तियों पर सफेद चूर्ण इकट्ठा हो जाता है। इस रोग के दिखने के बाद किसान भाइयों को चाहिये कि डाइनोकप 48 प्रतिशत ईसी की 400 मिलीलीटर मात्रा को 1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें। एक बार छिड़काव से रोग न समाप्त हो तो दो तीन बार 15-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिये।
  2. मृदुरोमिल फफूंद की बीमारी मटर के पौधों में पत्तियों की निचली सतह पर लगती है। इससे फसल को बहुत नुकसान होता है। इसके नियंत्रण के लिए 3 किलोग्राम सल्फर 80 प्रतिशत डब्ल्यूपी या डाइनोकेप 48 प्रतिशत ईसी की दो लीटर मात्रा को 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करनी चाहिये।

कीट प्रकोप और रोकथाम

1.फली बेधक कीट के रोग लगने से मटर की फसल में कीड़े लगते हैं जो मटर की फलियों और दानों को खा जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए मेलाथियान दो मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिये। 2.चेपा यानी लीफ माइनर कीट लगे के कारण पत्तियों पर सफेद रंग की धारियां दिखाई लगने लगतीं हैं। चेपा  तने व पत्तियों का रस चूस कर नुकसान पहुंचाते हैं। इनकी रोकथाम के लिये मोनोक्रोटोफॉस 3 मिलीलीटर को प्रति लीटर पानी में मिलाकर घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये। 3.तना मक्खी का प्रकोप अगैती किस्म की मटर की फसल में अधिक होता है। यह कीट पौधों की बढ़वार को पूरी तरह से रोक देता है। इस रोग का नियंत्रण करने के लिए कार्बोफ्यूरान 3 जी नामक रसायन को 10 किलोग्राम की दर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिये। 4.पत्ती सुरंगक: इस कीट का प्रकोप दिसम्बर माह में देखा जाता है। यह कीट मार्च तक सक्रिय रहता है। यह कीट पत्तियों में सुरंग बना कर रस चूसता रहता है। इसके नियंत्रण के एि मेटासिस्टौक्स 26 ईसी की एक लीटर की मात्रा को 1000 लीटर पानी में मिलाकर घोल बनायें और उसका छिड़काव करें। जरूरत के अनुसार बार बार छिड़काव करते रहें। 5.फल बेधक कीट: यह कीट फलियों में छेद करके दानों को खा जाती हैं। इसका अधिक होने से पूरी फसल बरबाद हो सकती है। इस रोग की रोकथाम करने के लिस किसान भाइयों को मोनोक्रोटोफॉस 36 ईसी की 750 मिली लीटर मात्रा को 600 से 700 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें। एक बार में लाभ न मिले तो इसका छिड़काव  जल्दी-जल्दी करें।
जानिए कैसा रहेगा अलीगढ़ जनपद का मौसम एवं महत्वपूर्ण सलाहें

जानिए कैसा रहेगा अलीगढ़ जनपद का मौसम एवं महत्वपूर्ण सलाहें

कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार आने वाले दिनों में मौसम शुष्क रहेगा। अधिकतम एवं न्यूनतम तापमान क्रमश: २४.० से २७.० व १०.० से ११ .० डिग्री सेल्सियस रहेगा | इस दौरान पूर्वाह्न ७ .२१ को सापेक्षिक आद्रता ६० से ८५ तथा दोपहर बाद अपराह्न २.२१ को ४५ से ५५ प्रतिशत रहेगा। हवा ४.० -१३ .० कमी/घंटे की गति से चलने का अनुमान है। ईआरएफएस उत्पाद के अनुसार से २७ नवंबर- ३ दिसंबर २०२२ में अधिकतम तापमान,न्यूनतम तापमान सामाय और वर्षा सामान्य से कम हो सकती है। गन्ने की बुवाई नवंबर से पहले करें क्योंकि उसके बाद तापमान कम होगा एवं अंकुरण कम होगा। १५ दिन के अंतराल पर सिंचाई करें और बुवाई के २५-३० दिन बाद निराई करें।

फसल संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी व सलाह

मसूर की बुवाई

मसूर की बुवाई जिसने ना करी हो वे अभी कर सकते हैं, लेकिन प्रति हैक्टेयर ५५ से ७५ किलो ग्राम बीज लगेगा। बुवाई के ४५ दिन बाद पहली सिंचाई कर और बोआई के ५५ से ७५ दिन बाद फूल निकलने से पहले सिंचाई करें।

गेहूँ की बुवाई

गेहूँ के खेत की तैयारी में देख लें कि मिट्टी भुरभुरी हो जाए डले ना रह जाए। गेहूँ की बुवाई का सबसे अच्छा समय १५ से ३० नवंबर तक है, इस मध्य गेहूँ की बुवाई हर हाल में पूरी कर लें। HD २९६७, UP २३८२, PBW ५०२ आदि २.५ ग्राम कार्बेन्डजिन प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से बीजोपचार करें पंक्ति के मध्य २०-३० सेमी की दूरी और पौधे के बीच १० सेमी रखें।
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बागवानी संबंधित आवश्यक सलाह

टमाटर ग्रीष्म ऋतु की फसल हेतु कम व अधिक बढ़ने वाली दोनों प्रजातियों की रोपाई ६०४५ सेंटीमीटर पर करें। टमाटर में खरपतवार नियंत्रण हेतु प्रति हैक्टेयर पेंडीमेथिलीन १ किलोग्राम सक्रिय तत्व रोपण के 2 दिन बाद १००० लीटर पानी में घोलकर बनाकर प्रयोग करें।

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अधिक आद्रता के कारण, आलू और टमाटर में ब्लाइट का संक्रमण हो सकता है। लगातार नगरानी की सलाह दी जाती है। यदि लक्षण दिखें तो कार्बनडीजीन@ 1.0 ग्राम / लीटर पानी या Dithane-M-45 @ 2.0 ग्राम / लीटर पानी की दर से स्प्रे करने की सलाह दी जाती है।
किसान ने टमाटर का उचित दाम ना मिलने की वजह से सड़क पर फेंक दिए टमाटर

किसान ने टमाटर का उचित दाम ना मिलने की वजह से सड़क पर फेंक दिए टमाटर

टमाटर उत्पादन करने वाले किसानों को उनकी फसल का समुचित भाव नहीं प्राप्त हो रहा है। इसकी वजह से औरंगाबाद जनपद के एक नवयुवक किसान बेहद परेशान और हताश होकर टमाटर को बाजार विक्रय हेतु ले जाने की अपेक्षा सड़कों पर फेंकना उचित समझ रहा है। युवा किसान ने बताया है, कि इतने कम मूल्य पर लागत तक नहीं निकल पायेगी। महाराष्ट्र राज्य में कृषकों की दिक्कत समाप्त ही नहीं हो पा रही है। कभी बेमौसम बारिश और कभी-कभी उपज का समुचित मूल्य नहीं प्राप्त हो पाता है। बीते सात माह से प्याज के किसानों को बेहद कम मूल्य अर्जित हो रहा है। साथ ही, फिलहाल टमाटर के भाव में भी काफी गिरावट हो गयी है। प्रदेश के औरंगाबाद जनपद में वडजी गांव निवासी एक किसान टमाटर को सड़कों पर फेंकना उचित समझ रहा है। किसान का कहना है, कि बाजार में टमाटर का मूल्य 100 रुपये प्रति क्विंटल प्राप्त हो रहा हैं। अब ऐसे में फसल पर किया गया खर्च भी नहीं निकल सकता इसलिए वह टमाटर सड़कों पर ही फेंकना सही समझ रहा है।
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बतादें, कि किसानों ने बीते कुछ माह से प्राकृतिक आपदाओं की वजह से निरंतर नुकसान का सामना किया है। फिलहाल सब्जियों एवं फसलों के मूल्यों में कमी होने की वजह से आर्थिक रूप से बेहद कमजोर होते जा रहे हैं। टमाटर का उचित भाव न प्राप्त होने पर हताश किसान टमाटरों को सड़क पर फेकने के लिए मजबूर हो गया था।

किसान ने अपनी समस्या को बताया

औरंगाबाद के पैठण तालुक के वाडजी गांव निवासी युवा किसान कैलास बॉम्बले का कहना है, कि उन्होंने स्वयं के एक एकड़ खेत में टमाटर लगाया था। इस दौरान जब टमाटर की प्रथम खेप तैयार होने के बाद किसान टमाटर का विक्रय करने हेतु पैठन बाजार ले जाने का निर्णय लिया गया। परंतु जब उन्हें मालूम हुआ कि, बाजार में टमाटर पर केवल 100 रुपये प्रति क्विंटल से लेकर 200 रुपये प्रति क्विंटल का भाव प्राप्त हो रहा है। बेहद निराशा और हताशा की वजह से किसान ने टमाटरों को सड़क पर ही फेंक दिया। किसान कैलास बॉम्बले ने कहा है, कि इतनी कम कीमत मिल रही है, जिसमें से लागत तक निकाल पाना बेहद मुश्किल है।

जानें कौन-सी मंडी में क्या भाव मिल रहा है

महाराष्ट्र राज्य की चंद्रपुर की मंडी में 20 दिसंबर को 365 क्विंटल टमाटर विक्रय हेतु आये। टमाटर का न्यूनतम दाम 200 रुपये प्रति क्विंटल एवं अधिकतम दाम 400 रुपये प्रति क्विंटल था। वहीं औसतन भाव 300 रुपये प्रति क्विंटल रहा था। राउरि में 36 क्विंटल टमाटर विक्रय हेतु आये। न्यूनतम मूल्य 200 रुपये प्रति क्विंटल एवं अधिकतम मूल्य 800 रुपये प्रति क्विंटल था। वहीं, औसत भाव 600 रुपये प्रति क्विंटल रहा था।
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रहता में 78 क्विंटल टमाटर विक्रय हेतु आये। न्यूनतम मूल्य 200 रुपये प्रति क्विंटल रहा एवं अधिकतम मूल्य 1000 रुपये प्रति क्विंटल और औसत मूल्य 600 रुपये प्रति क्विंटल मिला। डिंडोरी में टमाटर मंडी में 220 क्विंटल टमाटर विक्रय हेतु आये। जिनका न्यूनतम मूल्य 100 रुपये प्रति क्विंटल रहा एवं अधिकतम मूल्य 355 रुपये प्रति क्विंटल वहीं औसत मूल्य 275 रुपये प्रति क्विंटल था।
नववर्ष के जनवरी माह में करें इन सब्जियों का उत्पादन मिलेगा बेहतरीन मुनाफा

नववर्ष के जनवरी माह में करें इन सब्जियों का उत्पादन मिलेगा बेहतरीन मुनाफा

नया साल आ गया है, नए साल के आरंभ में फसलों का चयन उस हिसाब से करना अच्छा होगा जिससे आपको आगामी कुछ माह के अंतराल में ही अच्छा खासा मुनाफा हो सके। नववर्ष के जनवरी माह में किसान उन फसलों को उगाएं, जिनसे किसानों को होली आने तक बेहतरीन लाभ अर्जित हो सके। नए साल के समय में खेतीबाड़ी या कृषि के क्षेत्र में इस वर्ष काफी कुछ अच्छा, नवीन एवं अलग होना है। किसानों की आशाएं नए साल सहित एक बार पुनः जाग्रत हो गई हैं। फसलों से अच्छी पैदावार लेने हेतु किसान निरंतर कोशिशों में जुटे हुए हैं। फिलहाल, बहुत सारे किसानों द्वारा खेतों में सरसों, गेंहू, तोरिया एवं सब्जी फसलों का उत्पादन करना शुरू किया है। अगर आपने अभी ऐसी सब्जियों की बुवाई नहीं की है, तो आप मौसम के अनुरूप कुछ विशेष सब्जियों का चयन करके 2 से 3 माह में बेहतरीन उत्पादन कर सकते हैं। हम आपको आगे यह बताने वाले हैं, कि जनवरी के मौसम में किन सब्जियों का उत्पादन करना चाहिए। किसानों को उन फसलों का उत्पादन करें जिनसे उनको बेहतरीन मुनाफा अर्जित हो सके।

टमाटर का उत्पादन करें

ये बात जग जाहिर है, कि टमाटर की सब्जी बारह महीने चलने वाली फसल है, जिसका उत्पादन प्रत्येक सीजन में किया जा सकता है। सर्दियों के मौसम में भी टमाटर की फसल का उत्पादन किया जा जा सकता है। परंतु फसल को अत्यधिक ठंड-शर्द हवाओं से संरक्षित करना होगा, आप चाहें तो खेत के एक भाग में टमाटर का पौधरोपण कर सकते हैं। बेहतरीन एवं सुरक्षित उत्पादन हेतु पॉलीहाउस अथवा ग्रीन हाउस के भीतर भी टमाटर की फसल उगा सकते हैं। एक बार बुवाई अथवा पौध की रोपाई के उपरांत 10 दिन के अंतराल में एक बार सिंचाई करनी बेहद जरूरी होगी। टमाटर की बेहतरीन किस्मों से कृषि की जा रही है तो निश्चित रूप से आपको होली तक टमाटर का अच्छा उत्पादन प्राप्त हो जाएगा।

मिर्च का उत्पादन करें

सर्दी हो अथवा गर्मी, प्रत्येक मौसम में मिर्च को अत्यधिक उपभोग में लिया जाता है। आपको यह बतादें, कि सर्दियों के मौसम में मिर्च का उपभोग काफी बढ़ जाता है। इस वजह से जनवरी माह में मिर्च का उत्पादन करना अच्छा होगा। अगर नवंबर माह के अंदर आपने मिर्च की नर्सरी को तैयार किया हो, तो इन पौधों को खेत के किनारे मेड़ों पर भी उगा सकते हैं।


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इस मिर्च का प्रयोग खाने से ज्यादा सुरक्षा उत्पादों में किया जाता है।
लेकिन याद रहे कि पौधों के मध्य में 18 से 24 इंच की दूरी अवश्य हो। सर्दियों में मिर्च की फसल में अधिक पानी देने की आवश्यकता भी नहीं पड़ती है। इस वजह से 10 से 15 दिन के अंतराल में हल्का सा जल जरूर दें, जिससे 60 से 90 दिनों के भीतर बेहतरीन उत्पादन हाँसिल हो सके।

प्याज का उत्पादन करें

सर्द जलवायु में प्याज से अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है, कि 17 जनवरी तक प्याज के पौधों का रोपण कर सकते हैं। अगर प्याज की बाजार में मांग के बारे में बात करें तो लाल प्याज सहित हरे प्याज की भी अच्छी खासी मांग रहती है। प्याज की खेती से बेहतरीन उत्पादन हेतु खेतों में पहले उर्वरक डाल क्यारियां तैयार करें।


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इसके उपरांत 10 से 20 सेमी की दूरी पर प्याज का पौधरोपण की कर दें। आपको बतादें कि प्याज की बुवाई या रोपाई हेतु सबसे अच्छा समय शाम का माना जाता है। प्याज में हल्की सिंचाई करने से फसल में नमी बनी रहती है।

कंद सब्जियों का उत्पादन करें

ठंड के मौसम को कंद सब्जियों का भी मौसम माना जाता हैं, आलू से लेकर अदरक, हल्दी, शकरकंद, गाजर, मूली आदि का उत्पादन किया जाता है। यह समस्त फसलें 60 से 90 दिन में पूरी तरह उपभोग हेतु तैयार हो जाती हैं। यह भूमि में उत्पादन करने वाली सब्जियां हैं, इस वजह से मृदा में सामान्य नमी का होना जरुरी है। जिन खेतों में जलभराव हो वहाँ कंद सब्जियां ना उगाएं, इसकी वजह से उत्पादन में सड़न-गलन उत्पन्न हो जाती है। इन बागवानी सब्जियों की अप्रैल माह तक बाजार में खरीद बनी रहती है।

हरी पत्तेदार सब्जियां उगाएँ

सर्दियों की प्रसिद्ध हरी सब्जियां पालक, मेथी, धनिया, बथुआ एवं सरसों का साग अत्यधिक मांग में रहता है। एक बार खेतों में इन सब्जियों का उत्पादन करके प्रथम कटाई के उपरांत हर 15 दिन के अंतराल में 3 से 4 बार कटाई ली जा सकती है। हरी पत्तेदार सब्जियों में आयरन की बहुत अच्छी मात्रा पायी जाती है। बहुत सारे लोग इन सब्जियों को सुखाकर वर्षभर उपयोग करते हैं, जिन्हें ड्राई वेजिटेबल्स भी कहा जाता है। अगर आप जनवरी माह में इन सब्जियों का उत्पादन कर रहे हैं, तो मार्च माह तक आपको खूब उत्पादन प्राप्त हो जाएगा।

मटर के उत्पादन से होंगे यह लाभ

मटर का उत्पादन सर्दियों के मौसम में किया जाता है, परंतु इससे किसान मात्र एक बार की खेती से वर्ष भर लाभ उठा सकते हैं। जनवरी में मटर की बुवाई कर एकसाथ उत्पादन लेकर इसकी प्रोसेसिंग करें एवं इसको फ्रोजन मटर का रूप दें। इस तरह आपकी उपज पूरे वर्ष बिकेगी एवं बर्बाद भी नहीं होगी। बतादें कि बहुत सारे डेयरी केंद्र, परचून की दुकान एवं विभिन्न उत्पाद श्रेणियों पर फ्रोजन मटर की माँग रहती है। चाहें तो ई-नाम के माध्यम से सीधे ऑनलाइन मंडी में मटर का उत्पादन को विक्रय किया जा सकता है।
ठंड़ और पाले की वजह से बर्बाद हुई फसल का मुआवजा मांगने के लिए हरियाणा के किसान दे रहे धरना

ठंड़ और पाले की वजह से बर्बाद हुई फसल का मुआवजा मांगने के लिए हरियाणा के किसान दे रहे धरना

भारत की विभिन्न जगहों पर ठंड एवं पाला वर्तमान स्थिति में भी फसलों को काफी प्रभावित कर रहा है। हरियाणा राज्य के विभिन्न जनपदों में टमाटर, बैंगन, मटर जैसी बाकी फसलों को भी हानि पहुंचा रहा है। कृषि विशेषज्ञों द्वारा खेती किसानी करने वालों को सतर्कता एवं सावधानी बरतने की सलाह देदी है। भारत के विभिन्न स्थानों में फिलहाल भी प्रचंड कड़ाके की सर्दी पड़ी हुई है। हालांकि, कुछ प्रदेशों में विगत थोड़े समय से मौसम में नरमी अवश्य आई है। लेकिन विशेषज्ञों ने बताया है, कि फिलहाल जनवरी का माह चल रहा है। किसान इस धोखे में कतई ना रहें कि ठंड निकल गई हैं। किसानों को फसलों के संरक्षण हेतु सतर्क और सावधान रहने की आवश्यकता है। साथ ही, पाले से संरक्षण हेतु आवश्यक इंतजाम करते रहें। वहीं, जिन राज्यों में पाले का असर फिलहाल भी देखने को मिल रहा है। पाले के आक्रमण से फसलों की जान खतरे में आनी आरंभ हो गई है।

हरियाणा राज्य में बागवानी फसलों को काफी हानि

हरियाणा के रोहतक में निरंतर पड़ रहे पाले का असर फसलों पर देखने को मिल रहा है। एकमात्र कनीना में ही लगभग 52 एकड़ में उत्पादित की जाने वाली टमाटर की फसल को 60 से 90 फीसद तक हानि होने की आशंका व्यक्त की है। यहां 15 से 18 जनवरी माह तक भयंकर पाला पड़ा है। इसका प्रभाव फिलहाल टमाटर, बैंगन, आलू, मटर एवं बेल वाली सब्जियों पर दिखाई दे रहा है। यह सब्जियां आहिस्ते-आहिस्ते सूखती जा रही हैं। इसके अतिरिक्त हिसार में मटर, आलू, टमाटर की लगभग 300 एकड़ फसल पाले से प्रभावित हुई है। किसानों ने राज्य सरकार से आर्थिक सहायता की मांग व्यक्त की है। किसानों ने बताया है, कि सर्दी और पाले की वजह से मटर व टमाटर की फसल की उन्नति एवं प्रगति थम गई। इससे टमाटर की फसल उत्पादन में भारी कमी आएगी।
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केवल इस फसल के लिए ठंड़ लाभकारी साबित होती है

विशेषज्ञों के बताने के अनुसार, ज्यादा सर्दी का फायदा सामान्यतः गेहूं की फसल पर अधिक देखने को मिलता है। गेहूं की फसल इस मौसम में तीव्रता से विकास करती है। वहीं, सर्दी अगर साधारण है, तब यह टमाटर, आलू, सरसों, मटर सहित समस्त फसलों हेतु लाभकारी भूमिका निभाती है। इस मौसम के अंदर बेहतरीन उत्पादन भी हो जाता है। परंतु, पाला अत्यधिक पड़ने की स्थिति में सब्जी, बागवानी फसलों को ज्यादा हानि होती है।

किसान अपनी फसल की सुरक्षा हेतु सतर्क और सावधान रहें

पाले से फसलों को बाचव के लिए लो टनल, शेड नेट, सरकंडे का उपयोग कर सकते हैं। फसलों व सब्जियों में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। खेत के उत्तर-पश्चिम छोर पर रात के समय थोड़ा धुआं कर देना चाहिए। सांद्र गंधक का अम्ल 0.1 फीसद मतलब 1 मिलीलीटर 1 लीटर जल के अंदर इसके अतिरिक्त घुलन-शील गंधक 0.2 फीसद 2 ग्राम प्रति लीटर जल में अथवा थायो यूरिया (Urea) 500 पीपीएम 0.5 ग्राम प्रति लीटर जल में का घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिए। अगर ठंड़ और पाला ज्यादा समय तक बना रहे, तो छिड़काव प्रत्येक 15 दिन के अंदर करना काफी जरूरी है।

फसलों में हुए नुकसान को लेकर हरियाणा के किसान सड़कों पर

फसल को सर्दी और पाले से हुए भारी नुकसान से परेशान किसानों ने हरियाणा सरकार से फसल का मुआवजा देने के लिए धरना प्रदर्शन किया है। भारत के किसान विगत साल से कई सारी प्राकृतिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं। अब अत्यधिक ठंड़ और पाले की वजह से किसानों की विभिन्न फसलें प्रभावित हो चुकी हैं। इसलिए किसान निराशा की स्थिति में सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन कर रहे हैं।
अचानक बारिश से इस राज्य के किसानों को लगा झटका

अचानक बारिश से इस राज्य के किसानों को लगा झटका

किसान मोहित वर्मा का कहना है, कि उन्होंने इस बार काफी बड़े स्तर पर टमाटर की खेती की थी। खेत में टमाटर पके हुए थे। बस एक से दो दिन में उसकी तुड़ाई चालू होने वाली थी। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद में मौसम ने आकस्मिक तौर पर करवट बदली एवं देखते ही देखते आसमान में काले बादल से छा गए। इसके उपरांत तेज हवाओं सहित बारिश का दौर चालू हो गया। इससे लोगों को गर्मी से काफी हद तक राहत तो मिली। परंतु, किसान भाइयों के लिए यह बरसात मुसीबत बन गई। बारिश से खेत में लगी तरबूज, खरबूज और टमाटर की फसल को काफी ज्यादा हानि पहुंची है। विशेष कर बारिश होने से टमाटर सड़ने लग गए हैं। ऐसी स्थिति में किसान काफी चिंताग्रस्त हो गए हैं।

तरबूज, खरबूज और टमाटर की फसल में काफी नुकसान

मीडिया खबरों के अनुसार, किसानों ने बताया है, कि पिछले साल बाजार में तरबूज, खरबूज, टमाटर और खीरा का अच्छा-खासा भाव था। इसके चलते किसानों ने इस बार इन्हीं सब फसलों की खेती की थी, जिससे बेहतरीन आय हो पाए। परंतु, अचानक बारिश आने से सबकुछ बर्बाद हो गया। किसानों ने कहा है, कि बरसात की वजह से टमाटर, तरबूज और खरबूज की फसल में रोग लगना शुरू हो गए हैं। इससे फल सड़ना शुरू हो जाते हैं। साथ ही, तरबूज और खरबूज में दाग- धब्बे आ गए हैं। इससे बाजार में इसकी कीमतों में काफी गिरावट आई है। ऐसे में किसान भाई खर्चा तक भी नहीं निकाल पा रहे हैं।

व्यापारी टमाटर को खरीदने से बच रहे हैं

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि किसान मोहित वर्मा ने कहा है, कि उन्होंने इस बार बड़े स्तर पर टमाटर की खेती की थी। उनके खेत में टमाटर पके हुए थे। बस एक से दो दिन में उसकी तुड़ाई चालू होने वाली थी। परंतु, इससे पहले ही बारिश हो गई, जिसके चलते टमाटर में कीड़े लग गए एवं सड़न भी चालू हो गई। फिलहाल, बाजार में मेरे टमाटर को व्यापारी खरीदने से कतरा रहे हैं। मोहित वर्मा का कहना है, कि इस बार उसने 2 बीघे खेत में टमाटर की खेती की थी। इसके ऊपर 60 हजार रुपये की लागत आई थी। परंतु, फिलहाल ऐसा लग रहा है, कि लागत भी नहीं निकल सकेगी। यह भी पढ़ें : गर्मियों में ऐसे करें टमाटर की खेती, जल्द ही हो जाएंगे मालामाल

तरबूज और खरबूज की खेती करने वाले किसान ने क्या कहा है

साथ ही, किसान बहादुर ने कहा है, कि इस बार 70 हजार रुपये की लागत से उसने चार बीघे में तरबूज और खरबूज की खेती की थी। परंतु, बारिश के कारण तरबूज और खरबूज के फल सड़ना शुरू हो गए। साथ ही, उसमें दाग- धब्बे भी आ चुके हैं। अब ऐसी स्थिति में मंडी में हमारी फसल की समुचित कीमत नहीं प्राप्त हो पा रही है। यदि मंडी के अंदर यही भाव चलता रहा, तो इस बार तरबूज- खरबूज की खेती में घाटा होगा। बतादें, कि बारिश की वजह से महाराष्ट्र में किसान भाइयों को काफी हानि का सामना करना पड़ा है। सैकड़ों एकड़ में लगी प्याज की फसल को भी क्षति पहुंची है।